सूर्य नमस्कार
सूर्य नमस्कार एक प्राचीन योग है सूर्य नमस्कार भारतीय प्राचीन भाषा संस्कृत भाषा से उत्पन्न हुआ है । सूर्य नमस्कार का शाब्दिक अर्थ “सूर्य का स्वागत करना’’ । सभी योगासनों में सूर्य नमस्कार सर्वश्रेष्ठ योगासन है । यह एक ऐसा योगासन अभ्यास है जो साधक के सम्पूर्ण शरीर को लाभ पहुंचता है और हमारे शरीर को स्वस्थ कर तेजस्वी बनाता है और सूर्य नमस्कार से आयु, प्रज्ञा, बल, वीर्य, और तेज बढ़ता है। सूर्य नमस्कार ऐसा योगासन है, जिसको सभी लोग कर सकते है। सूर्य नमस्कार में बारह प्रकार की अभ्यास स्थितियों में किया जाता है ।
(1) प्रणामासन- समतल जमीन पर आँखो को बन्द कर,दोनों हाथों को जोड़कर सीधे खड़े हों। ध्यान 'आज्ञा चक्र' पर केंद्रित करके 'सूर्य भगवान' का आह्वान 'ॐ मित्राय नमः' मंत्र के द्वारा करें।
(2) हस्तउत्थान आसन- श्वास को भरते हुए दोनों हाथों को कानों से सटाते हुए ऊपर की ओर तानें तथा भुजाओं और गर्दन को पीछे की ओर झुकाएं। ध्यान को गर्दन के पीछे 'विशुद्धि चक्र' पर केन्द्रित करें और 'ॐ रवये नमः' का आह्वान करें ।
(3) हस्तपाद आसन- तृतीय स्थिति में श्वास को धीरे-धीरे बाहर निकालते हुए आगे की ओर झुके तथा हाथ गर्दन के साथ, कानों से सटे हुए नीचे जाकर पैरों के दाएं-बाएं पृथ्वी का स्पर्श करें। इस स्थिति में घुटने सीधे रखें तथा माथा घुटनों का स्पर्श करता हुआ ध्यान नाभि के पीछे 'मणिपूरक चक्र' पर केन्द्रित करते हुए कुछ क्षण इसी स्थिति में रुकें और 'ॐ सूर्याय नमः' का आह्वान करें ।
(4) अश्व संचलानासन- यह योग की चौथी स्थिति है इस स्थिति में श्वास को भरते हुए बाएं पैर को पीछे की ओर ले जाएं। छाती को खींचकर आगे की ओर तानें। गर्दन को अधिक पीछे की ओर झुकाएं। टांग तनी हुई सीधी पीछे की ओर खिंचाव और पैर का पंजा खड़ा हुआ। चेहरे की स्थिति सामान्य रखत हुए इस स्थित में कुछ देर तक रुकें । ध्यान को 'स्वाधिष्ठान' अथवा 'विशुद्धि चक्र' पर ले जाएँ और 'ॐ भानवे नमः' का आह्वान करें । ।
(5) दंडासन- श्वास को धीरे-धीरे बाहर निष्कासित करते हुए दाएं पैर को भी पीछे ले जाएं। दोनों पैरों की एड़ियां परस्पर मिलाते हुए शरीर को हांथो व पंजो के उपर ले जाये। ध्यान 'सहस्रार चक्र' पर केन्द्रित करने का अभ्यास करें और 'ॐ खगाय नमः' का आह्वान करें ।
(6) अष्टांग नमस्कार - श्वास भरते हुए शरीर को पृथ्वी के समानांतर, सीधा साष्टांग दण्डवत करें और पहले घुटने, छाती और माथा पृथ्वी पर लगा दें। नितम्बों को थोड़ा ऊपर उठा दें। श्वास की गति सामान्य करें। ध्यान को 'अनाहत चक्र' पर टिका दें और 'ॐ पुष्णे नमः' का आह्वान करें ।
(7) भुजंगासन, - इस स्थिति में धीरे-धीरे श्वास को भरते हुए छाती को आगे की ओर खींचते हुए हाथों को सीधा कर, गर्दन को पीछे की ओर ले जाएं। दृष्टि आकाश की तरफ रखें । घुटने पृथ्वी का स्पर्श करते हुए तथा पैरों के पंजे खड़े रहें। ध्यान को 'मूलाधार' पर खींचकर टिका दें और 'ॐ हिरण्यगर्भाय नमः' का आह्वान करें ।
(8) पर्वतासन - इस स्थिति में शरीर के पश्चभाग हिप्स को उठाएं और सिर को झुका लें । एड़ी को जमीन पर लगायें। इस स्थिति में कुछ समय रुकें। ध्यान को 'स्वाधिष्ठान' पर ले जाएँ और 'ॐ मरीचये नमः' का आह्वान करें ।
(9) अश्व संचलानासन-
यह योग की चौथी स्थिति है इस स्थिति
में श्वास को भरते हुए बाएं पैर को पीछे की ओर ले जाएं। छाती को खींचकर आगे की ओर
तानें। गर्दन को अधिक पीछे की ओर झुकाएं। टांग तनी हुई सीधी पीछे की ओर खिंचाव और
पैर का पंजा खड़ा हुआ। चेहरे की स्थिति सामान्य रखत हुए इस स्थित में कुछ देर तक
रुकें । ध्यान को 'स्वाधिष्ठान' अथवा 'विशुद्धि
चक्र' पर ले
जाएँ और 'ॐ भानवे
नमः' का आह्वान करें । ।
(10) हस्तपाद आसन-
तृतीय स्थिति में श्वास को धीरे-धीरे बाहर निकालते हुए आगे की ओर झुके तथा हाथ गर्दन के साथ, कानों से सटे हुए नीचे जाकर पैरों के दाएं-बाएं पृथ्वी का स्पर्श करें। इस स्थिति में घुटने सीधे रखें तथा माथा घुटनों का स्पर्श करता हुआ ध्यान नाभि के पीछे 'मणिपूरक चक्र' पर केन्द्रित करते हुए कुछ क्षण इसी स्थिति में रुकें और 'ॐ सूर्याय नमः' का आह्वान करें ।
(11) हस्तउत्थान आसन- श्वास को भरते हुए दोनों हाथों को कानों से सटाते हुए ऊपर की ओर तानें तथा भुजाओं और गर्दन को पीछे की ओर झुकाएं। ध्यान को गर्दन के पीछे 'विशुद्धि चक्र' पर केन्द्रित करें और 'ॐ रवये नमः' का आह्वान करें (12) प्रणामासन- समतल जमीन पर आँखो को बन्द कर,दोनों हाथों को जोड़कर सीधे खड़े हों। ध्यान 'आज्ञा चक्र' पर केंद्रित करके 'सूर्य भगवान' का आह्वान 'ॐ मित्राय नमः' मंत्र के द्वारा करें।
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| सूर्य नमस्का के सम्पूर्ण आसन |
सूर्य नमस्कार के लाभ-
सूर्य
नमस्कार के नियमित अभ्यास से सम्पूर्ण शरीर को स्वस्थ रखा जा सकता है इस योग की प्रक्रिया
अत्यधितक लाभकारी है । सूर्य नमस्कार से त्वाचा रोगों को जड़ से खत्म किया जा सकता
है।सूर्य नमस्कार से पाचन तंत्र मजबूत होता है और कब्ज आदि उदर रोग भी खत्म हो
जाते है । इसके अभ्यासी के हाथों-पैरों के दर्द दूर होकर शरीर मजबूत हो जाता है।
गर्दन, फेफड़े
तथा पसलियों की मांसपेशियां मजबूत हो जाती हैं, शरीर की फालतू चर्बी कम होकर शरीर दुरुस्त हो जाता है।
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नोटः सर्वाइकल,कमर
एवं रीढ़ के दोष वाले साधक न करें या अपने चिकित्सक से सलाह अवश्य लें । |


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